बुधवार, 23 मई 2012

UNKE GHAR JANA

 उनके घर जाना 

 उनके घर  जाना 
 अब   इतना  आसन नहीं   रहा 

अब  ओ  इतनी  नजदीक नहीं  रहती 
  करते बोले और आखिर मै  एक बात है उनकी 
की आवाज  दो बुला दो 
अब उनके पास जाने के  लिए 
दो मेट्रो बदलनी परती  है 
घर ऐसा  नहीं  खुल जा 

एक   चोकीदार मुछे घूरता ह घुँरता है 
नाम काम धाम  लिखता लिखता है 
मिलने का पयोजन पर  आकर  अटक जाता 
 दूर  कही भटक जाता हूँ 



हरीश जोशी 

 

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